aadarsh
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अगर आज हमारे बीच महात्मा गाँधी( बापू ) होतें तो क्या वह आज जो हो रहा है यह देखकर खुश होते? शायद जवाब होगा नहीं। इसी को ध्यान में रखते मै बंदर बापू का एक कविता पेश कर रहा हूँ।
……. इक्कीसवीं सदी का दौर है
हर किसी को आस है……..
पर आपको है पता
बापू उदास हैं…..
अहिंसा कहां गई
सत्य भी है खो गया….
कोयले की खान में
सब काला हो गया….
बची नहीं उम्मीद है
न अब विश्वास है
देखकर हमंे-तुम्हें
बापू उदास हैं……
बापू के बंदरों ने भी
छोड़ दी बापू-गिरि
अब क्या है बचा….
सब खत्म हो गया…
सम्मान तो है आपका ( बापू का )
पर कम नहीं उपहास है
देखकर यह कह रहा मैं
बापू उदास हैं…
महान बनने की चाह है ( हम सभी को )
इंसान तो है सो गया
मेरे बापू का सपना तो
सपनों मे ही खो गया…
हत्या है…..बालात्कार है
बंद करते एक-दूसरे की सास हैं
रो रही है आत्मा…………क्योंकि
बापू उदास हैं……..।
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