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हमका कोई बतावै भैया – (कविता)

aadarsh
aadarsh
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हमका कोई बतावै भैया
ई कईसन बात है………….
जब जाबो इस गहराई मा
जनबो….. ई का बात है…
आके कोई बतावै भैया
काहे भागमभाग है………
सब तो पहिनत कपड़ा हैं….और
सब खाना खात हैं…..
फिर काहे का खून-खराबा
ये तो गड़बड़ बात है……..
हमका कोई बतावै भैया
ई कईसन बात है ?
हमका भाए गुड़-रोटी…….और
काहे की प्यास है ?
जीवन चले दा हल…..के……लेखा (हल की तरह)
सब हरियाली बन जात है
प्यार की भाषा सबसे मीठी
फिर काहे मतभेद हो
हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई
हम सब मिलकर एक हों
मंदिर-मस्जिद इक भगवान
फिर काहे का भेद हो
प्यार की भाषा हम सब बोलें
न कोई मतभेद हो ।

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