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सोंचता इंसान है………कविता

aadarsh
aadarsh
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ढह रही है देख दुनिया
ढह रहा ईमान है………

देखकर हर वक्त इसको
सोंचता इंसान है

रास्तें तो हैं…..लेकिन
राह अब आसां नहीं…….
मुश्किलों में ही छिपा आशाओं का संसार है….

कब्र के मुरदों सरीखी हो गई फितरत यहाँ
जख़्म देकर जख़्म पर मरहम की है फितरत यहाँ
मूरतों की चाह में असलियत कुर्बान है
देखकर हर वक्त इसको सोंचता इंसान है…….

हर बार कसमें तोड़कर होता रहा वादा जहाँ
वादों की बिखरी राख से लिपटा ये कब्रिस्तान है
देखकर हर वक्त इसको सोंचता इंसान है…..

चलता-फिरता दिख रहा पुतला ये मिट्टी का बना
सोंचकर खुद को समझता आज ये भगवान है
देखकर हर वक्त इसको सोंचता इंसान है…….

सदमों की बारिश में है भीगी आज की इंसानियत
गुजरे समय से सीखकर कुछ तो मुसाफिर ले जरा
कुछ तो बदलकर देख ले शायद बड़़ा ईमान है
देखकर हर वक्त इसको सोंचता इंसान है……..

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